Monday, September 23, 2013

मुद्दतों हुए माँ से मिले

'The Mother of Sisera' by Albert Joseph Moore.
मुद्दतों पहले एक शाम बिन बताये घर पहुँचा था
माँ आज भी शाम को चार रोटी अधिक बनाती है!

मुद्दतों पहले मजाक़ में ही माँ से कहा था, कि
तेरे आज के उपवास ने मुझे एक दुर्घटना से बचा लिया
माँ आज भी हर रविवार को उपवास रखती है !

मुद्दतों पहले जिस खिलौने के टूटने पर मैं खूब रोया था
माँ आज भी उस टूटे खिलौने को मेज पर सजा के रखती है !

मुद्दतों पहले मैंने माँ के जिस साड़ी में आसूँ पोछे थे
माँ आज भी उस साड़ी पर हाथ फेर रोया करती है !

मुद्दतों पहले मेरे बीमार होने पर
माँ ने बगल के दरगाह में मन्नत मांगी थी
माँ आज भी हर शाम उस दरगाह में सजदा करने जाती है !

मुद्दतों हुए माँ से मिले, उसकी आखों से वो दुनिया देखे
जिसमें परियां होती थी, राजा रानी की अठखेलियाँ होती थी
फिर एक सुहानी नींद होती थी !

मुद्दतों हुए माँ से मिले!

4 comments:

kuldeep thakur said...

सुंदर रचना...मां पर इतनी सुंदर कविता, क्या खूब लिखा है। कृप्या टिप्पणी से वल्ड वैरिविकेशन हटा दें ताकि टिप्पणी करने वाले को असुविधा न हो।

monali said...

Lovely :)

Rajeev Ranjan said...

यार वैसे तुम्हारी हर रचना बेहतर होती है .... लेकिन यह अब तक का सबसे अच्छा  है ...(मुद्दतों हुए माँ से मिले)

Unknown said...

awesome rachna