Saturday, November 23, 2013

Voter

वह छिपता-छिपाता
बचता-बचाता
सड़क पर जाता
मिल न जाएं पार्टी वालें
मन ही मन शुक्र मनाता

न जाने
किस काल में काल बनकर
वादों का जंजाल ले कर
कितनों का काल ख़राब कर
धम से प्रकट हो जाए, उसका माथा फिराएं
वह सकपकाता, सहमा सा किनारे से निकल जाता

कुछ हैं उसके अपने
दूर के नज़दीकतम उसे बताते
अब तक दूर थे, पर आज जाना, ये भी करीब थे!
पार्टी में हैं, शायद इसलिए करीब हैं
वादों का एक लम्बा लिस्ट याद है,
सुनाना एक मात्र, वर्तमान में, जिनका काम है
वह सुन के आधे-अधूरे वादों को
सबको अपना समर्थन बताता, आगे बढ़ता जाता

कई बार है सुना
कितने वादों को
दम्भिकों के विवादों को
किराये के प्यादों को
अब कोई फर्क न पड़ता
आधा जीवन काट लिए उसने
उन्हें भी इशारों में समझाता, बाज़ार पहुँच जाता

एक किलो आलू, आधा किलो भाजी
एक पाव टमाटर , एक पाव प्याज़
माँगता, जेब टटोलता
कुछ सोचता.... तन खड़ा हो फिर चीज़े गिनाता
आधा झोला भर
सहमा सा घर लौटता
नज़र घुमाता, घबराता, आगे बढ़ता जाता !

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