Saturday, January 4, 2014

सब कहते हैं कि उसने दर्द को देखा है

सब कहते हैं कि उसने दर्द को देखा है
मुझको है मालूम, उसने मेरी आँखों में देखा है !

अश्क है या पानी इसका उसे कोई खबर नहीं
दरिया तो नहीं देखा मगर उसने समन्दर देखा है !

वो झूमते बाग़, वो गाती हवायें उन दिनों
खिज़ा में भी  उसने  बहार  को  देखा  है !

दिन में माहताब, रात में उजाला तन्हाई में
उसने  न  जाने  क्या  क्या  देखा  है !

बहुत देर हो गयी सोच कर शमा बुझा दी उसने 
न जाने किस ख्याल से, शमा फिर से जला कर देखा है !

तारे थें सारे, फिर भी आकाश की वो महफ़िल उदास थी
बड़ी जद्दोजहद से, बादलों का पर्दा हटा कर उसने चाँद को देखा है !



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