Thursday, March 13, 2014

मैं लिखता हूँ

सुलझी हुई ज़िन्दगी उलझाने के लिए लिखता हूँ
भरे हुए घाव कुरेदने के लिए लिखता हूँ !

कुछ सर्द एहसास दब से गयें है भीतर
उनका भी राग सुनाने के लिए लिखता हूँ !

लश्कर है फिरता ग़मों का इस ज़हन में
उन सबकी तरबियत के लिए लिखता हूँ !

घर घड़ी जो तमन्नायें उफान मारती हैं
उन्हें बहलाने फुसलाने के लिए लिखता हूँ !

मुझे खबर है किसी के इंतज़ार की
इसलिए नहीं चाहते हुए भी लिखता हूँ !

क्या मालूम कब रुक जाये नब्ज़े हयात
अपना भी रंग छोड़ जाने के लिए लिखता हूँ !


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