Sunday, May 11, 2014

माँ तो माँ ही होती है

बच्चे की सलामती के लिए मंदिर मज़ार भटकती है
वो हिन्दू मुस्लमान नहीं, माँ तो माँ ही होती है

मुझसे पहले होता है उसे मेरे दर्द का एहसास
मेरी माँ सपने में भी मेरा ख्याल रखती है

कहता हूँ यहाँ सब कुछ है और मैं भी अच्छा हूँ
बेटा दूर है सोचकर माँ फिर भी उपवास करती है

एक बेटे के पास होकर भी दुसरे की चिंता करती है
ज़माने पे नहीं है उसे भरोसा अपने दुआओं तले रखती है

उसके उम्र से लगता है थक गयी है अब आराम करे
मगर मेरे बिमारी पे मेरी चाकरी के लिए तैयार रहती है

कैसे कहूँ फुर्सत नहीं हैं अबकी बार काम बहुत है
मगर उसे तो केवल मुझे देखने भर की तमन्ना रहती है

डरता हूँ केवल जुदा होने से वरना मुझे यक़ीन है
दूसरे जहां में भी माँ की दुआएं काम करती है


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