Sunday, July 20, 2014

हर कोई पथिक

मैं भी पथिक
तुम भी पथिक
जीवन पथ पर
नेपथ की पुकार सुन
पाथेय का जुगाड़ करता
वह भी पथिक !

रस्ते से कटते राहों पर
कहीं मजबूत कहीं डगमगाते
क़दमों के साथ
मंजिल की खोज में 
बढ़ता हर कोई पथिक !

दिल में उम्मीद लिए
खुद को संवारता
चंद रातों की इस दुनिया में
अनगिनत खाब सजाता
जलती बुझती राहों पर
गुजरता गुनगुनाता पथिक !

जाने पहचाने चेहरों में
अपने पराये के बीच
कभी खोता कभी पाता
उजड़ते बसते गलियों में
भूले बिसरे यादों को
सहेजता बिखेरता पथिक !

सफर के दैरान
बाहर से भीतर झांकता
कहीं कोलाहल कहीं सन्नाटा
अक्सर ही वह पाता
चलती दुनिया एक लय बध
क़दमों से कदम मिलाता
व्यस्त रखने में संघर्षरत
खुद से ही मिलता बिछुड़ता पथिक !



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