Saturday, September 13, 2014

जज़्बातों के दरिया को घुमाव नया मिले

चलते फिरते रास्तों पे पड़ाव नया मिले
जज़्बातों के दरिया को घुमाव नया मिले

दिन धूप  जलना  चाँदनी  रात  पिघलना
अँधेरे उजाले के जंग को लहकाव नया मिले

जो फिसलना मुक्क़दर हो राहे इश्क़ में, तो
ज़माने की नज़र के लिए चढ़ाव नया मिले

हमने जाना है मजा-ए-फ़ाक़ा-मस्ति मगर
ज़ायका  परस्ती में कोई  घाव  नया मिले

गुफ़्तगू  हुई  तनहाई  से  सारी  रात
तन्हा सफर में इसे पड़ाव नया मिले

मुंतज़िर हैं साहिल पे हमारी हसरते तमाम
हक़ीक़त से लड़ते सपनों को बहाव नया मिले

मिट जो जायें राहे इंतज़ार में यूँ ही बेमाने
ज़माने को चर्चा और मनबहलाव नया मिले

मुख़्तसर है दुनिया मुख़्तसर ज़िन्दगानी
दिलखोल मिले सबसे कुछ ठहराव नया मिले

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