दिन कब बीता पता ही नहीं चला
चाँद कब रूठा पता ही नहीं चला
सितारों से सदा बड़ी देर आई
बादल कब हटा पता ही नहीं चला
जिधर से भी गुज़रा काँटे ही चुना
फूल कब खिला पता ही नहीं चला
पूरी बात हँसते हँसते ही हुई, उसे
बुरा कब लगा पता ही नहीं चला
सफ़र के नज़ारे हमने साथ देखें
क्या कब चुभा पता ही नहीं चला
खुद से थोड़ी बात क्या की 'शादाब'
काफ़िला कब छूटा पता ही नहीं चला
चाँद कब रूठा पता ही नहीं चला
सितारों से सदा बड़ी देर आई
बादल कब हटा पता ही नहीं चला
जिधर से भी गुज़रा काँटे ही चुना
फूल कब खिला पता ही नहीं चला
पूरी बात हँसते हँसते ही हुई, उसे
बुरा कब लगा पता ही नहीं चला
सफ़र के नज़ारे हमने साथ देखें
क्या कब चुभा पता ही नहीं चला
खुद से थोड़ी बात क्या की 'शादाब'
काफ़िला कब छूटा पता ही नहीं चला
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