Sunday, December 14, 2014

कदम कदम पे हमें छला उसने

कदम कदम पे हमें छला उसने
धीरे धीरे हमें पूरा बदला उसने

रंग बिरंगे फूल थे हमारे दामन में
एक एक करके सब छिना उसने

नशे की चादर पहना कर हमें
सोने को जागना बताया उसने

हिस्से में है अब कुछ यादे अपनी
ज़िन्दगी को तो ख़ाब बनाया उसने

हमारी नादानी थी जो भरोसा किया
विश्वास का खेल खूब रचाया उसने

अपने ही घर में नौकर हो गयें
हमें क्या से क्या बनाया उसने

अपनी खुशज़िन्दगी की किताब जो सौपी
तो हरेक पन्ने को ग़लत बताया उसने

देर सही मगर जो समझा  हिसाब
हमें पागल कहके पुकारा उसने

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