Friday, December 19, 2014

यही सृष्टि क्रम दोहराया जा सके

Frustration by Roy-Ba on DeviantArt
बहुत सारे अहसास आते हैं
मुझसे टकराकर करते हैं "ढब"
दुबारा कोशिश करते हैं
फिर और तेज गूँजता है "ढब"
अब मैं ख़ुशी ख़ुशी कहता हैं
"मैं काठ हो गया हूँ "
"काठ"
भीतर जगह बची नहीं कि खलबली हो सके
इसका मुझे बरसों से इंतज़ार था
अब न गंगाजल पीऊँगा
न नाले का गन्दा पानी
न सोमरस न धूआँ
मैं पूरे का पूरा भर गया हूँ
सहने की सीमा से भी आगे
बाहर भी खाली कुछ नहीं बचा
कि फेकूँ शब्दों के भाले
जो तैरते हुए लगे निशाने पे
निशाने भाले के नोक पे बैठ चुके
और सुनने वालों के कान मेरे कंठ में
नहीं सुनाना अब कुछ भी
कुछ बचा रह गया
तो मात्र जलना
और जलाना सब कुछ
ताकि फिर से
कुछ नहीं से
यही सृष्टि क्रम दोहराया जा सके !

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