Wednesday, January 14, 2015

रोशन हुआ अँधेरा और बेवक़्त सहर किया

कहते हो कि हमने भरोसा क्यूँ कर किया
देखते नहीं किन हालात में मगर किया 

राह के काँटों की नोक उतनी भी नहीं थी
और करते क्या जो तेरे नाम पर किया 

आजमाईश हमारी क़ैद पे जो हो चुकी हो
तो बता वो जगह जहाँ न तूने हो घर किया

गर्दिशों में सही मगर सितारे मेरे भी चमके
यूँ ही कोशिश ज़माने ने न कम कर किया

जो पहुँचें संगे रंजिश बे यार ही कहीं
बेक़रार नालिशों ने हर इल्ज़ाम सर किया

तन्हाई ने आखिरकार आवाज़ जो लगाई
हर सम्त सन्नाटों ने फिर जिक्र किया

करवट बदलते जो कतरा-ए-ख़्वाब गिरा
रोशन हुआ अँधेरा और बेवक़्त सहर किया

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